सूरज

in poems

हर सुबह उम्मीदों का सूरज,
उगता ढलता दे जाता है ,
कुछ स्वप्न नये, कुछ पंख नये,
कुछ अरमानों के रंग नये ,
देता है कुछ संदेश नए ,
नवजीवन के परिवेश नये,
ठिठुरे सिकुड़े मनोभावों को,
उष्माओं के कुछ अंश नये।
जब नए उम्मीदों का दीपक ,
बुझने को आतुर होता है,
तब सूरज बिखरा जाता है,
नव किरणों के परवाज़ नये।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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