हर सुबह उम्मीदों का सूरज,
उगता ढलता दे जाता है ,
कुछ स्वप्न नये, कुछ पंख नये,
कुछ अरमानों के रंग नये ,
देता है कुछ संदेश नए ,
नवजीवन के परिवेश नये,
ठिठुरे सिकुड़े मनोभावों को,
उष्माओं के कुछ अंश नये।
जब नए उम्मीदों का दीपक ,
बुझने को आतुर होता है,
तब सूरज बिखरा जाता है,
नव किरणों के परवाज़ नये।
हिंदी भाषा की व्यथा
मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह