याद आ रहा, गांव हमारा,
बांसों का झुरमुट,वो न्यारा।
जहां रातों के अंधियारे में,
जुगनू जगमग करते थे,
आमों के बागीचे में,
झिंगुर बोला करते थे,
चांद और तारों के नीचे,
बिस्तर डाला करते थे,
सप्तऋषि से तारों की,
दूरी को नापा करते थे।
समय का पहिया घूम घूमकर,
शहरों तक ले आया, लेकिन जो दिल में बसता,
वो गांव कहां, मिल पाया?
मिट्टी की वो सोंधी खुशबू,
कोयल की मीठी सी कुहू कुहू,
आंधी में अमियां का गिरना,
फिर उनको भी दौड़ दौड़ कर,
भरी दुपहरी में था, चुनना।
उतना सहज सरल जीवन,
ये शहर कहां दे पाया?
मेरे प्यारे गांव, मुझे तू,
याद बहुत ही आया।