मां तेरी वो यादें, बातों की बरसाते ।
भीनी सी खुशबू जैसी थी,तेरे आंचल की रातें।
यादों की गठरी से, रह-रहकर आ जाती,
जीवन की उलझी राहों को, सीख तेरी सुलझाती।
मेरे जीवन नैया की,नदी धार बन जाती,
तपते थकते जीवन में, बदरी बन छा जाती।
कर्मयोग का जादू तूने,कब किससे था सीखा?
मुझे सिखा दे, मैं भी बन जाऊं, कलयुग की ‘भगवद् गीता’