चलो, बढ़ती हुई उम्र के साए में बैठकर ,
जीवन की तेज धूप से ,
कुछ फासले कर लें,
चाहतों से भरे इस जीवन को ,
चलो, आज खाली कर लें ,
रोज बदलते किरदारों से ,
आज ,अभी ,तौबा कर लें ,
तुम अपनी तन्हाइयों को ,
रुखसत कर दो,
हम अपने सन्नाटों से आजादी ले लें ,
फिर, लहरों के किनारों पर ,
बालू में बैठकर ,
कुछ सीप में ढूंढे ,
और खुद को ही भूलें|