१२ वर्ष तक गुरुकुल में रह कर शिक्षा प्राप्त करने के बाद शिष्य के जब घर जाने का समय आया,तब शिष्य ने गुरुजी से पूछा,कि गुरुदेव कृपया सांसारिक जीवन को स्वर्ग जैसा सुखद बनाने का उपाय तो बताएं,ताकि जीवन में कष्ट का आगमन न होने पाएं।
गुरु ने कहा,कि तुम जीवन के प्राकृतिक नियमों के विरूद्ध जाने की बात कर रहे हो। जब सोलह कलाओं से युक्त हो ने पर भी कृष्ण का जन्म कारावास में हुआ, और पूरे जीवन उन्होंने अनेक युद्धो का सामना किया।
जीवन के उतार चढ़ाव ने जब राम जैसे पुरुषोत्तम को नहीं छोड़ा।पूरा जीवन उन्होंने भी अनेक मुसीबतों का सामना करते हुए बिताया, तो तुम एक सामान्य व्यक्ति होकर , ये कैसे संभव कर पाओगे,कि मुसीबतें तुम्हारे सामने न आए।
शिष्य ने दुःखी होकर पूछा, लेकिन बेहतर जीवन का कोई उपाय तो होगा। तब गुरु ने कहा,कि बेटा मुश्किलें तो जिंदा लोगों के पास ही आती हैं। मुर्दों के पास नहीं। फिर भी तुम्हारे लिए एक गुरु मंत्र हैं,इसे हमेशा याद रखना।
फिर गुरु ने गुरु मंत्र दिया,कि-
आंखों में शरम,
ज़ुबान को नरम,
ईमान और धरम,
हमेशा कायम रखना।
स्वर्ग तुम्हारे भीतर और बाहर हर तरफ स्वयं निर्मित हो जाएगा।और शिष्य संतुष्ट होकर अपने घर चला गया।