मेरा गट्टू

in poems

मेरा है गट्टू खरगोश,

देता है मन को परितोष ,

प्यार जताता, खुशी दिखाता,

जब आती हूं ,घर को लौट,

कान झटक और मटक मटक,

जब चलता है तो लगता है ,

नन्हा सा कोई बच्चा यूं ही ,

मचल मचल कर चलता है ,

सुबह सवेरे सही समय पर,

आकर मुझे जगाता है,

जैसे कोई झप्पी देकर,

सुबह-सुबह उठाता है,

कदम फर्श पर पड़ते ही,

यूं नाच नाच इठलाता है,

जैसे कोई बड़ा काम ,

करके कोई इतराता है,

आगे पीछे घूम घूम कर ,

यूं परवाह दिखाता है ,

हम  इंसानों  को जैसे,

ये प्रेम का पाठ पढ़ाता है।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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