मेरा है गट्टू खरगोश,
देता है मन को परितोष ,
प्यार जताता, खुशी दिखाता,
जब आती हूं ,घर को लौट,
कान झटक और मटक मटक,
जब चलता है तो लगता है ,
नन्हा सा कोई बच्चा यूं ही ,
मचल मचल कर चलता है ,
सुबह सवेरे सही समय पर,
आकर मुझे जगाता है,
जैसे कोई झप्पी देकर,
सुबह-सुबह उठाता है,
कदम फर्श पर पड़ते ही,
यूं नाच नाच इठलाता है,
जैसे कोई बड़ा काम ,
करके कोई इतराता है,
आगे पीछे घूम घूम कर ,
यूं परवाह दिखाता है ,
हम इंसानों को जैसे,
ये प्रेम का पाठ पढ़ाता है।