घनघोर अमा में आस की,
अन्तिम किरण अवशेष है,
डूबती ही जा रही मानवता,
आकण्ठ भ्रष्टाचार में,
फिर भी तट पर उम्मीद का,
नाविक अकेला शेष है।
पुरज़ोर ग़र प्रयास हो,
इन्सानियत की बात हो,
सत्य ही पर अड़ सके,
भ्रष्ट हो तो लड़ सके,
हर जुर्म का इंसाफ होगा,
तब स्वर्णिम प्रभात होगा।