सावन

in poems

मन ने फिर आवाज लगाई, अब तो रहे न बाबा-आई। जो कहते सावन में आओ, भाई को राखी बंधवाओ। इस आमंत्रण से गर्वित हो, जब-जब मैं पीहर को जाती, आंखों में नेह-अश्रु लिए तब, बाबा-आई को मैं पाती। न वैसा आमंत्रण है,अब। न वैसा त्योहार……। सम्बन्धों के खालीपन से, अनुगुंजित आवास……।

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भरम

in poems

जो उम्मीदों के गठ्ठर, उठाए बैठे हैं, वो रिश्तों के चमन में मुरझाए बैठे हैं। खुद की कुव्वत का जिन को,भरम हो रहा, उनको लगता है,कि वो आसमां को उठाए बैठे हैं।

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बात

in poems

बात निकली है तो, बात पे बात निकलेगी। बीती बातों की पूरी, बारात निकलेगी। शिकवा उनको भी है, शिकायत हमको भी है। बढ़ेगी जो बात तो, आंखों से बरसात निकलेगी भावों के पत्ते तो, झड़ ही गये। हो दिल में बची आस, तो मुलाकात निकलेगी।

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रिश्तों के हिम

in poems

जो मैंने कहा था, वो आप ने सुना नही, जो मैंने कहा नहीं, वो आप ने सुना था। रिश्तों के ये जो बाने हैं, वो हमने खुद ही ताने है। थोड़ा थोड़ा आगे बढ़कर, रिश्तों के हिम को पिघलाएं, मैं थोड़ा सा आगे आऊं, वो थोड़ा सा पीछे जाएं, फिर अपने इस तालमेल को, ये…

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बरखा रानी

in poems

बरखा रानी तेरा पानी, हर मन को हरषाता। तेरा आना उमड़ घुमड़ कर, तन पुलकित हो जाता। बरखा बोली, ‘धरती रानी’, तेरा जीवन,मेरा पानी, फिर क्यूं व्यर्थ बहाती, ज्यादा बरसूं, कद्र नहीं, कम बरसूं, तो सब्र नहीं।  

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ध्वनियां

in poems

अक्सर हम वो सुन नहीं पाते, जो ये दुनिया कहती हैं। और कभी हम बिना कहे भी, बहुत कुछ सुन जाते है। वे ध्वनियां जो ध्वनित नहीं हो, ज्यादा शोर मचाती है। दिन का चैन उड़ा देती हैं, रातों को जगाती हैं।

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