सर्द सर्द रातों में, दर्द भरी यादों की ,
महफिलें जब सजती हैं ,
ओस बिखर जाते हैं , आसमां के रोने में,
अश्रु जम से जाते हैं ,आंखों के सोने में ,
तुम जहां भी जाओगे, दुनिया के कोने में ,
दूर ना कर पाओगे, मुझ में खुद के होने में ।वक्त ठहर जाता है ,जिनकी एक आहट में,
वो निकल ही जाते हैं, सपनों को ढोने में। ठहरो, वहां चलते हैं ,वक्त जहां रहता है ,
नीम के दरख़्तों में, मंद मंद बहता है।
साझेदारी
मेरे बाबा, जिनके गुस्से से घर में मेरी मां और सारे भाई बहन डरते थे ।