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emotions - page 3

ओ,सखि………!

in poems

बात दिल की तुम अपनी, छुपाया न करो। बात जो भी हो, वो तुम बताया करो। बातों बातों में ही, रूठ जाती हो, दर्द के समंदर में, डूब जाती हो। कभी रेत के सहरा पे भी, आ जाया करो। रेत में भी खिलते हैं, कांटों पे फूल, जिन्हें देखकर उम्मीदें, जगाया करो। हर बात  का…

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बचपन

in poems

मस्तमौला फक्कड़पन, मासूमियत भरा बचपन, महंगे खिलौनों की दरकार नहीं। माटी से काम चला लेंगे,   हम आनंद मना लेंगे। ये भोलापन,ये अल्हड़पन, जिसको कहते हैं,सब बचपन।

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नींव का पत्थर

in poems

जिस की कोमल अनुभूति से, श्वांसे धड़क रही हैं, बन के घर के नींव का पत्थर, फिर भी सिसक रही हैं। उसे “एक” दिन प्रेम प्रर्दशन में, दुनिया न समेटे, जो दुनिया को नवजीवन, और देती बेटी बेटे। जाकर कोई समझाओ, दुनिया उनके आंसू पोंछे, तब सार्थकता मातृदिवस की, जब मांओं की पीड़ा सोखे।

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शकुन्तला

in poems

क्रोध को जीता नहीं, और दे दिया अभिशप्त जीवन। शकुन्तला जब बैठ कुटिया में, कर रही थी, मधुर चिंतन। दोष उसका बस यही था, देख न पाई प्रलय को, भावना में बह गयी, पी गयी पीड़ा के गरल को। निर्दोष शकुन्तला सोच रही, वो किस समाज का हिस्सा है? अपने अस्तित्व को खोज रही, ये…

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नारी

in poems

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अनकही सी बातें

in poems

कुछ अनकही सी बातें, जो कह रही हूं तुमसे, कम को अधिक समझना, ग़र हो सके जो तुमसे। तेरी बात में था मरहम, वो भी था इक ज़माना, अब काम का बवंडर, है व्यस्तता बहाना। प्रश्नो का है समंदर, और दर्द मेरे अंदर, बहने को है आकुल, ये सोच के हूं व्याकुल। परवाह तो है…

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