कुछ अनकही सी बातें,
जो कह रही हूं तुमसे,
कम को अधिक समझना,
ग़र हो सके जो तुमसे।
तेरी बात में था मरहम,
वो भी था इक ज़माना,
अब काम का बवंडर,
है व्यस्तता बहाना।
प्रश्नो का है समंदर,
और दर्द मेरे अंदर,
बहने को है आकुल,
ये सोच के हूं व्याकुल।
परवाह तो है मेरी,
ये जानती हूं मैं भी,
फिर कान क्यूं सुनने को,
दो बोल तरस जाते?
मरने के पहले जी ले,
जाना तो है कभी तो,
जीवन तो तुम हो मेरे,
पता तो है सभी को।