अनकही सी बातें

in poems


कुछ अनकही सी बातें,

जो कह रही हूं तुमसे,

कम को अधिक समझना,

ग़र हो सके जो तुमसे।

तेरी बात में था मरहम,

वो भी था इक ज़माना,

अब काम का बवंडर,

है व्यस्तता बहाना।

प्रश्नो का है समंदर,

और दर्द मेरे अंदर,

बहने को है आकुल,

ये सोच के हूं व्याकुल।

परवाह तो है मेरी,

ये जानती हूं मैं भी,

फिर कान क्यूं सुनने को,

दो बोल तरस जाते?

मरने के पहले जी ले,

जाना तो है कभी तो,

जीवन तो तुम हो मेरे,

पता तो है सभी को।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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