सुबह सवेरे प्रथम किरण के ,
पहले उठकर सज जाना ,
फिर छठ की पूजा को तत्पर,
नदी किनारे पर जाना।
मां से ज्यादा हम बच्चों का ,
उत्साहित होकर गाना,
नदी किनारे जाने की ,
बेताबी को हमने जाना ।
ठंडे पानी में उतर सूर्य की,
पूजा को ,कर घर आना ।
आनंदित करता है ,अब भी ,
छठ पूजा का वो गाना।
अब तो मां का आंचल है, ना।
छठ की पूजा पर जाना,
लेकिन जीवन ऊर्जाओं का,
उस पल से है ताना-बाना।
गुलाब का संदेश
मेरी बगिया का अधखिला गुलाब, नव ऊष्मा से पूरित गुलाब , कुछ मुस्काता सा बोल रहा,