लेन-देन की नाप-तोल,
हर रिश्ते पर भारी है।
रिश्तों को पैसों से तौलना,
दिमागी बीमारी है।
उपहारो की कीमत से,
रिश्तों का मोल नहीं होता,
रिश्ता होता है, भाव भरा,
इसका कोई जोड़ नहीं होता,
लोहे की जंजीरों सी है,
लेन-देन की अभिलाषा,
दम घुटता है, इसे देखकर,
घुट जाती सबकी आशा।
क्यो करते हो, लेन-देन?
रिश्तों की ये तो आरी है।
देते क्यो हो? जब लेने की,
तड़प तुम्हारी भारी है।
दुनिया से जब जाओगे तो,
ले जाओगे इन्हें कहां ?
स्वर्गलोक की दुनिया में तो,
कर्मों की ही गठरी भारी है।