नाप-तौल

in poems

लेन-देन की नाप-तोल,

हर रिश्ते पर भारी है।

रिश्तों को पैसों से तौलना,

दिमागी बीमारी है।

उपहारो की कीमत से,

रिश्तों का मोल नहीं होता,

रिश्ता होता है, भाव भरा,

इसका कोई जोड़ नहीं होता,

लोहे की जंजीरों सी है,

लेन-देन की अभिलाषा,

दम घुटता है, इसे देखकर,

घुट जाती सबकी आशा।

क्यो करते हो, लेन-देन?

रिश्तों की ये तो आरी है।

देते क्यो हो? जब लेने की,

तड़प तुम्हारी भारी है।

दुनिया से जब जाओगे तो,

ले जाओगे इन्हें कहां ?

स्वर्गलोक की दुनिया में तो,

कर्मों की ही गठरी भारी है।

 

 

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय