सावन की बदरी फिर छाई,
मस्त हवाएं फिर बौराई ,
बूंदें बरसी , सड़कें भींगी,
भींग गई, मन की बगियां,
मां बाबा फिर याद आ गये,
याद आई उनकी बतियां,
हर सावन पर पीहर से,
जब जब आमंत्रण आता था,
मन मयूर तब नाच नाच कर,
अपना जश्र मनाता था ।
मां बाबा के होने से,
सावन- सावन कहलाता था|
पीहर जाने के लिए प्रतीक्षित ,
समय कहां रुक पाता था ।
मां बाबा बिन सूना पीहर,
न आमंत्रण की आस रही,
राखी आए, होली आए,
अब वैसी न बात रही,
चहल पहल और घर की रौनक,
बीते कल की बात रही,
पीहर के उन सुखद पलों की,
अब तो बाकी याद रही।