माँ

in poems

तू कैसे जान लेती है माँ
मेरी भूख को, मेरी प्यास को
मैं चाहती हूं क्या?
और मेरी आस को ?
वो कौन सा जादू है माँ
वो मुझे भी सीखा दे तू
वो कौन सी थाती है माँ
वो मुझे भी दिखा दे तू
दुनिया के सारे गरल
कर पान तू जीवित रही
कैसे मुझे अमृत दिया
विषपान के प्रतिदान पर
वो कौन सा जादू है माँ
वो मुझे भी सीखा दे तू
दुनिया के झंझावातो ने
जब जब मुझे घायल किया
तब तब तुम्हारी याद ने
कितना मुझे सम्बल दिया
तू जादू है या जन्नत है
मेरी जितनी भी मन्नत है
वो तेरे नाम से उन्नत है
मुझको तो अभी तक हैरत है
जिस तरह गढ़ा तूने खुद को
क्यों ढाल न पायी मैं खुद को

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय