अंधेरी स्याह रात में,
जो दीप बन के जल रहा,
प्रबुद्ध हो के आज भी,
पहचान को तरस रहा।
जो राष्ट्र का स्तंभ है,
समाज का प्रबंध है,
विद्यालय की शान है,
समाज का अभिमान है,
कहने कि जितनी बातें हैं,
उस पर उतनी ही घाते हैं,
मर्माहत उसकी प्राते हैं,
जब दोषी उसे बताते हैं।
आँँसू बन के जो बह न सका,
दर्द अपना जो कह ना सका,
वह शिक्षक है वह ज्ञाता है,
वह राष्ट्र का निर्माता है।
जिज्जी
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