हे कृष्ण ! Published on 24/10/201824/10/2018 in poems by Vandana Rai सौंदर्य का संधान हो तुम, माधुर्य का आधान हो तुम, सौम्यता का पर्याय हो तुम, गाम्भीर्य का अभिप्राय हो तुम, मेरे अबोध अन्तःस्थल की, अभिज्ञान हो तुम, विश्रांति हो तुम । Keep Reading Share This No comments Facebook Twitter Google Pinterest Linked In You might be interested in विडंबना रक्तिम है कुरुक्षेत्र की माटी , चीख रही है अब भी घाटी, कर्तव्यों से आंख मूंदकर, बन जाना गांधारी , उर्मिला का वनवास उर्मिला बोली लक्ष्मण से, व्यथित हृदय पर मृदु वचन से, तुमको भाई का साथ मिला, मुझे महलों का वनवास मिला, जो जस करि………! जब राम के बाणों से धराशाई रावण मरणासन्न था, तब राम ने लक्ष्मण से कहा, कि लक्ष्मण रावण अब कुछ
विडंबना रक्तिम है कुरुक्षेत्र की माटी , चीख रही है अब भी घाटी, कर्तव्यों से आंख मूंदकर, बन जाना गांधारी ,
उर्मिला का वनवास उर्मिला बोली लक्ष्मण से, व्यथित हृदय पर मृदु वचन से, तुमको भाई का साथ मिला, मुझे महलों का वनवास मिला,
जो जस करि………! जब राम के बाणों से धराशाई रावण मरणासन्न था, तब राम ने लक्ष्मण से कहा, कि लक्ष्मण रावण अब कुछ