अभिलाषा Published on 24/10/2018 in poems by Vandana Rai चाहती हूँ बूँद हो लूँ , घन घटाओं संग उडूँ या , झूमती पतंग हो लूँ , सीमाओँ को तोड़ दूँ या , फिर मस्त मलंग हो लूँ , एकरस की कारा से , अब जरा स्वतंत्र हो लूँ , तार सप्तक गा चुकी मैं , मध्य में तो जी रही हूँ , सोचती हूँ… Keep Reading Share This No comments Facebook Twitter Google Pinterest Linked In You might be interested in साझेदारी मेरे बाबा ,जिनके गुस्से से घर में मेरी मां और सारे भाई बहन डरते थे ।वो जब किसी बात पर हिंदी भाषा की व्यथा मैं हिंदी भाषा हूं, आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह करना छोड़ दिया है बीती बातें याद आती हैं, बीती बातें, खट्टी मीठी कड़वी यादें, जीवन में आगे बढ़ते भी, छूट कहां पाती हैं यादें। प्रासंगिक
हिंदी भाषा की व्यथा मैं हिंदी भाषा हूं, आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह करना छोड़ दिया है
बीती बातें याद आती हैं, बीती बातें, खट्टी मीठी कड़वी यादें, जीवन में आगे बढ़ते भी, छूट कहां पाती हैं यादें। प्रासंगिक