शिक्षक
अंधेरी स्याह रात में, जो दीप बन के जल रहा, प्रबुद्ध हो के आज भी, पहचान को तरस रहा। जो राष्ट्र का स्तंभ है, समाज का प्रबंध है, विद्यालय की शान है, समाज का अभिमान है, कहने कि जितनी बातें हैं, उस पर उतनी ही घाते हैं, मर्माहत उसकी प्राते हैं, जब दोषी उसे बताते…