जीवन की साँझ Published on 24/10/2018 in poems by Vandana Rai जीवन की साँझ और तन्हाईयो का डेरा सूरज की रोशनी पर है बादलो का घेरा मन मेरा कर रहा क्यूँ यादों के घर का फेरा राहों पे चलते चलते बड़ी दूर आ गये है कोई मुझे बताए घर का पता जो मेरा दम भर के साँस ले लूँ दुनिया शोर गुल का मेला । Keep Reading Share This 2 comments Facebook Twitter Google Pinterest Linked In You might be interested in क़ैद उत्तराखंड की यात्रा के दौरान मैं नैनीताल के जिस होटल में रुकी थी ,उस होटल से वापसी वाले दिन सीढ़ियों छठ पूजा सुबह सवेरे प्रथम किरण के , पहले उठकर सज जाना , फिर छठ की पूजा को तत्पर, नदी किनारे पर घनघोर अमावस में आस की, अंतिम किरण अवशेष हैं, डूबती ही जा रही, मानवता, आकंठ भ्रष्टाचार में, फिर भी जीवन
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