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Hindi Poem - page 4

फिक्र

in poems

है फिक्र उन्हे मेरी कितनी, ये मुझको भी मालूम नही, लोगों से कहते फिरते हैं, क्या कहते हैं, मालूम नही| है जेब गरम उनकी कितनी, ये बतलाना होता है, मेरी जेबों के छेदों को, गिनकर जतलाना होता है|   पैसों की गर्मी अहंकारवश, कब शोला बन जाती है! रावण की सोने की लंका, कब मिट्टी…

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शंकर

in poems

जीवन के दहकते प्यालों में, हर पीड़ा को जल जाने दो, उस राख से नवनिर्माण करो, सुख परिभाषित हो जाने दो| बाधाओं का उत्तुंग शिखर, उस पर बर्फीली आंधी को, जिसने झेला स्थिर होकर, उसमें वासित होते शंकर|

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ख्वाहिशें

in poems

चलो, बढ़ती हुई उम्र के साए में बैठकर , जीवन की तेज धूप से , कुछ फासले कर लें, चाहतों से भरे इस जीवन को , चलो, आज खाली कर लें , रोज बदलते किरदारों से , आज ,अभी ,तौबा कर लें , तुम अपनी तन्हाइयों को , रुखसत कर दो, हम अपने सन्नाटों से…

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उर्मिला का वनवास

in poems

उर्मिला बोली लक्ष्मण से, व्यथित हृदय पर मृदु वचन से, तुमको भाई का साथ मिला, मुझे महलों का वनवास मिला, दोष बता जाते मेरे, तो दूर उन्हें मैं कर पाती, फिर संग तुम्हारे जा पाती, और साथ तुम्हारे रह पाती, यूं बिना कहे तुम चले गए, इस भवसागर में छोड़ गए, किस से पूछूं किस…

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मातृभूमि

in poems

वो जीना भी क्या जीना है, जो देश हित में जी न सके, वो मरना भी क्या मरना है, जो मातृभूमि पर मर न सके। कितने अनजाने वीरों ने, अपने जो रक्त बहाएं हैं, इस देश के मिट्टी पानी में, उन वीरों की गाथाएं हैं। झांसी की मिट्टी कहती हैं, हर बाला लक्ष्मीबाई हो, पंजाब…

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सावन

in poems

मन ने फिर आवाज लगाई, अब तो रहे न बाबा-आई। जो कहते सावन में आओ, भाई को राखी बंधवाओ। इस आमंत्रण से गर्वित हो, जब-जब मैं पीहर को जाती, आंखों में नेह-अश्रु लिए तब, बाबा-आई को मैं पाती। न वैसा आमंत्रण है,अब। न वैसा त्योहार……। सम्बन्धों के खालीपन से, अनुगुंजित आवास……।

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भरम

in poems

जो उम्मीदों के गठ्ठर, उठाए बैठे हैं, वो रिश्तों के चमन में मुरझाए बैठे हैं। खुद की कुव्वत का जिन को,भरम हो रहा, उनको लगता है,कि वो आसमां को उठाए बैठे हैं।

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बात

in poems

बात निकली है तो, बात पे बात निकलेगी। बीती बातों की पूरी, बारात निकलेगी। शिकवा उनको भी है, शिकायत हमको भी है। बढ़ेगी जो बात तो, आंखों से बरसात निकलेगी भावों के पत्ते तो, झड़ ही गये। हो दिल में बची आस, तो मुलाकात निकलेगी।

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रिश्तों के हिम

in poems

जो मैंने कहा था, वो आप ने सुना नही, जो मैंने कहा नहीं, वो आप ने सुना था। रिश्तों के ये जो बाने हैं, वो हमने खुद ही ताने है। थोड़ा थोड़ा आगे बढ़कर, रिश्तों के हिम को पिघलाएं, मैं थोड़ा सा आगे आऊं, वो थोड़ा सा पीछे जाएं, फिर अपने इस तालमेल को, ये…

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बरखा रानी

in poems

बरखा रानी तेरा पानी, हर मन को हरषाता। तेरा आना उमड़ घुमड़ कर, तन पुलकित हो जाता। बरखा बोली, ‘धरती रानी’, तेरा जीवन,मेरा पानी, फिर क्यूं व्यर्थ बहाती, ज्यादा बरसूं, कद्र नहीं, कम बरसूं, तो सब्र नहीं।  

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