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poems - page 4

बहुत याद आता है…

in poems

याद आ रहा, गांव हमारा, बांसों का झुरमुट,वो न्यारा। जहां रातों के अंधियारे में, जुगनू जगमग करते थे, आमों  के बागीचे में, झिंगुर बोला करते थे, चांद और तारों  के नीचे, बिस्तर डाला करते थे, सप्तऋषि से तारों की, दूरी को नापा करते थे।   समय का पहिया घूम घूमकर, शहरों तक ले आया, लेकिन…

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मां की यादें

in poems

मां तेरी वो यादें, बातों की बरसाते । भीनी सी खुशबू जैसी थी,तेरे आंचल की रातें। यादों की गठरी से, रह-रहकर आ जाती, जीवन की उलझी राहों को, सीख तेरी सुलझाती। मेरे जीवन नैया की,नदी धार बन जाती, तपते थकते जीवन में, बदरी बन छा जाती। कर्मयोग का जादू तूने,कब किससे था सीखा? मुझे सिखा…

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ज़न्नत-ए-एहसास

in poems

ख्वाबों की टोकरी, ख्वाहिशों का बोझ, जीवन की डोर से ,बंधा इनका छोर। श्वांसे हैं गिनती की,जाना है दूर, अधूरी सी ख्वाहिश से, इंसां मजबूर। कर्मों की टोकरी ही, जाएगी साथ, बाकी रह जाएगा, धरती के पास। छोड़ो इन ख्वाबों और ख्वाहिशों का बोझ, चलो, जिएं ऐसे जैसे, ज़न्नत-ए-एहसास तब सुखद हो जाएगा, धरती पे…

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विद्रोही स्वर

in poems

मैं उड़ूंगी, गिरूंगी, संभलूंगी, उठूंगी, लेकिन तुम मुझे मत बताओ , कि मुझे कैसे चलना है? मैं हॅंसूगी, खिलखिलाऊॅंगी, रोऊॅंगी, चिल्लाऊॅंगी, लेकिन तुम मुझे मत बताओ , कि मुझे कैसे बात करनी है? तुम भी तो ज़ोर से बोलते हो, ज़ोर से हंसते हो,ज़ोर से चिल्लाते हो, ज़ोर से चलते हो, जब मैंने तुम्हें नहीं…

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मुक्तिमार्ग

in poems

प्रतिपल घटते इस जीवन में, सोच रही थी खड़ी खड़ी, संग्रह करने की चाहत क्यों, करता इंसां घड़ी घड़ी, खाली हाथ ही आया है जो , खाली हाथ ही जाएगा, कर्मों का लेखा जोखा ही, स्मृतियों में रह जाएगा। महल, दुमहले ,घोड़े, हाथी, नहीं बनेंगे तेरे साथी, करुणा ,परोपकार की थाती, मुक्ति मार्ग दिखलाएगा। जलबिंदु…

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ख़ौफ ए क़हर

in poems

सन्नाटे चीख रहे, और ध्वनियां हुई मौन है। मानवता को लील रहा, जो ऐसा दानव कौन हैं? जीवो पर निर्ममता, आखिर अपना रुप दिखाएगी ही, ख़ौफ़ ए क़हर का मतलब भी, दुनिया को समझाएगी भी। निर्दयता के चरम बिन्दु को, छूकर भी जो गर्वित है। उनको अपने अणुमात्र से, ऐसा सबक सिखाएगी भी। ये प्रकृति…

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विडंबना

in poems

रक्तिम है कुरुक्षेत्र की माटी , चीख रही है अब भी घाटी, कर्तव्यों से आंख मूंदकर, बन जाना गांधारी , ऐसी थी क्या लाचारी ? लालच के दावानल, जब अपनों को झुलसाएंगे , कलयुग की इस विडंबना में, कृष्ण कहां से आएंगे ? सिंहासन पर यदि विराजित, धृतराष्ट्र हो जाएंगे , प्रतिभाओं के चीरहरण पर…

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शांता ताई

in Stories

शांता ताई  उम्र के उस पड़ाव पर थी, जब व्यक्ति अपने गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियां पूर्ण कर अपने जीवन के फुर्सत के क्षणों से उपजे खालीपन को अपनों के सानिध्य से और भगवत भजन से भर लेना चाहता है| लेकिन रिक्तता कि अनुभूतियों से रिक्त हो पाना, उच्च कोटि का अध्यात्म होता है| जिसे पाना,…

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तेरा जाना…….|

in poems

तेरे जाने की धुन सुनकर , वसंत कहीं रुक जाता है, आंखों का आंसू ओसबिंदु बन, घासों पर बिछ जाता है । शिशिर ऋतु है ,तेज हवा , सूरज की आंख मिचौली है। है भींगें से कुछ नयन  और, होठों पर हंसी ठिठोली है । आंखों में आंसू रुक जाता, तो कोहरा कोहरा दिखता है…

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संदेश

in poems

गणतंत्र की सुनहरी, फिर शाम आ रही है। सूरज की लालिमा यह, संदेश गा रही है । हम सब हैं भाई बंधु , यह देश है हमारा, अक्षुण्ण है, जिसकी संस्कृति, अनमोल भाईचारा। मिलजुल कर हम जिएंगे, फिर ज़हर ना पिएंगे, इंसानियत के दुश्मन, हमको नहीं गवारा। चलो यह प्रण भी ले लें । अभी…

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