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poems - page 3

हे नए साल

in poems

सपनों की दीर्घ वीथिका में, अगणित रंगों के इंद्रधनुष, लेकर आए ये नया साल । कुछ हास नए ,उल्लास नए , जीवन के कुछ अभिलाष नए, है पलक पांवड़े बिछे हुए , स्वागत में तोरण सजे हुए, आना तो खुशियां ले आना, दुनिया के आंसू ले जाना, इस वर्ष बहुत तड़पाया है, दुनिया को कितना…

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साथ तेरे

in poems

जो समय बिताया, साथ तेरे, वो समय नहीं छोड़ा मैं ने, वो हरपल मेरे साथ रहा, तेरी यादों के एहसास तले। जब साथ तुम्हारे होते थे, कभी हंसते थे, कभी रोते थे। अब हंसना,रोना छोड़ दिया, दुनियादारी के बोझ तले। जब संग तुम्हारे, मीलों तक, बेमतलब घूमा करते थे, वो यादें अब भी जीने का,…

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छठ पूजा

in poems

सुबह सवेरे प्रथम किरण के , पहले उठकर सज जाना , फिर छठ की पूजा को तत्पर, नदी किनारे पर जाना। मां से ज्यादा हम बच्चों का , उत्साहित होकर गाना, नदी किनारे जाने की , बेताबी को हमने जाना । ठंडे पानी में उतर सूर्य की, पूजा को ,कर घर आना । आनंदित करता…

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in poems

घनघोर अमावस में आस की, अंतिम किरण अवशेष हैं, डूबती ही जा रही, मानवता, आकंठ भ्रष्टाचार में, फिर भी जीवन के तट पर, ‘उम्मीद का नाविक’ अकेला शेष है।

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स्वदेश

in poems

है राम की धरा ये, अपना स्वदेश प्यारा, अर्पित करेंगें तन मन, संकल्प है हमारा, अविचल अडिग रहेंगे, आए कोई भी झंझा , हर घात से लड़ेंगे , हो प्रात या हो संझा। स्वाधीनता का परचम, ये याद है दिलाता , बलिदान और लहू का, इतिहास है बताता। कीमत चुकाई है जब, कई पीढ़ियों ने…

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पीहर

in poems

सावन की बदरी फिर छाई, मस्त हवाएं फिर बौराई , बूंदें बरसी , सड़कें भींगी, भींग गई, मन की बगियां, मां बाबा फिर याद आ गये, याद आई उनकी बतियां, हर सावन पर पीहर से, जब जब आमंत्रण आता था, मन मयूर तब नाच नाच कर, अपना जश्र मनाता था । मां बाबा के होने…

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नाप-तौल

in poems

लेन-देन की नाप-तोल, हर रिश्ते पर भारी है। रिश्तों को पैसों से तौलना, दिमागी बीमारी है। उपहारो की कीमत से, रिश्तों का मोल नहीं होता, रिश्ता होता है, भाव भरा, इसका कोई जोड़ नहीं होता, लोहे की जंजीरों सी है, लेन-देन की अभिलाषा, दम घुटता है, इसे देखकर, घुट जाती सबकी आशा। क्यो करते हो,…

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साझेदारी

in Blogs/Stories

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बीती बातें

in poems

याद आती हैं, बीती बातें, खट्टी मीठी कड़वी यादें, जीवन में आगे बढ़ते भी, छूट कहां पाती हैं यादें। प्रासंगिक होता जाता है, अनुभव के दरिया में उतरना, सार रहित होता जाता है, चकाचौंध के बीच गुजरना। जीवन के हर पल में कुछ तो, मर्म छुपा होता है,इन्हें समझना, आगे बढ़ना, व्यर्थ कहां होता है?…

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मज़दूरों का हाल…

in poems

सबकी छत  बनाने वाले, महलों को चमकाने वाले, क्यूं इतने मजबूर हुए है?भूख से थककर चूर हुए हैं। नींव की ईंटें रोयी थीं,तब। मजदूरों का हाल देख कर। आसमान बेचैन हुआ था,बचपन को बदहाल देखकर। न रोटी, न काम रहा जब, रहने को आवास रहा कब? उनके जलते छालों पर भी, राजनीति के काम हुए…

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