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Vandana Rai - page 4

Vandana Rai has 146 articles published.

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

नाप-तौल

in poems

लेन-देन की नाप-तोल, हर रिश्ते पर भारी है। रिश्तों को पैसों से तौलना, दिमागी बीमारी है। उपहारो की कीमत से, रिश्तों का मोल नहीं होता, रिश्ता होता है, भाव भरा, इसका कोई जोड़ नहीं होता, लोहे की जंजीरों सी है, लेन-देन की अभिलाषा, दम घुटता है, इसे देखकर, घुट जाती सबकी आशा। क्यो करते हो,…

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साझेदारी

in Blogs/Stories

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बीती बातें

in poems

याद आती हैं, बीती बातें, खट्टी मीठी कड़वी यादें, जीवन में आगे बढ़ते भी, छूट कहां पाती हैं यादें। प्रासंगिक होता जाता है, अनुभव के दरिया में उतरना, सार रहित होता जाता है, चकाचौंध के बीच गुजरना। जीवन के हर पल में कुछ तो, मर्म छुपा होता है,इन्हें समझना, आगे बढ़ना, व्यर्थ कहां होता है?…

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मज़दूरों का हाल…

in poems

सबकी छत  बनाने वाले, महलों को चमकाने वाले, क्यूं इतने मजबूर हुए है?भूख से थककर चूर हुए हैं। नींव की ईंटें रोयी थीं,तब। मजदूरों का हाल देख कर। आसमान बेचैन हुआ था,बचपन को बदहाल देखकर। न रोटी, न काम रहा जब, रहने को आवास रहा कब? उनके जलते छालों पर भी, राजनीति के काम हुए…

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बहुत याद आता है…

in poems

याद आ रहा, गांव हमारा, बांसों का झुरमुट,वो न्यारा। जहां रातों के अंधियारे में, जुगनू जगमग करते थे, आमों  के बागीचे में, झिंगुर बोला करते थे, चांद और तारों  के नीचे, बिस्तर डाला करते थे, सप्तऋषि से तारों की, दूरी को नापा करते थे।   समय का पहिया घूम घूमकर, शहरों तक ले आया, लेकिन…

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मां की यादें

in poems

मां तेरी वो यादें, बातों की बरसाते । भीनी सी खुशबू जैसी थी,तेरे आंचल की रातें। यादों की गठरी से, रह-रहकर आ जाती, जीवन की उलझी राहों को, सीख तेरी सुलझाती। मेरे जीवन नैया की,नदी धार बन जाती, तपते थकते जीवन में, बदरी बन छा जाती। कर्मयोग का जादू तूने,कब किससे था सीखा? मुझे सिखा…

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ज़न्नत-ए-एहसास

in poems

ख्वाबों की टोकरी, ख्वाहिशों का बोझ, जीवन की डोर से ,बंधा इनका छोर। श्वांसे हैं गिनती की,जाना है दूर, अधूरी सी ख्वाहिश से, इंसां मजबूर। कर्मों की टोकरी ही, जाएगी साथ, बाकी रह जाएगा, धरती के पास। छोड़ो इन ख्वाबों और ख्वाहिशों का बोझ, चलो, जिएं ऐसे जैसे, ज़न्नत-ए-एहसास तब सुखद हो जाएगा, धरती पे…

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विद्रोही स्वर

in poems

मैं उड़ूंगी, गिरूंगी, संभलूंगी, उठूंगी, लेकिन तुम मुझे मत बताओ , कि मुझे कैसे चलना है? मैं हॅंसूगी, खिलखिलाऊॅंगी, रोऊॅंगी, चिल्लाऊॅंगी, लेकिन तुम मुझे मत बताओ , कि मुझे कैसे बात करनी है? तुम भी तो ज़ोर से बोलते हो, ज़ोर से हंसते हो,ज़ोर से चिल्लाते हो, ज़ोर से चलते हो, जब मैंने तुम्हें नहीं…

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मुक्तिमार्ग

in poems

प्रतिपल घटते इस जीवन में, सोच रही थी खड़ी खड़ी, संग्रह करने की चाहत क्यों, करता इंसां घड़ी घड़ी, खाली हाथ ही आया है जो , खाली हाथ ही जाएगा, कर्मों का लेखा जोखा ही, स्मृतियों में रह जाएगा। महल, दुमहले ,घोड़े, हाथी, नहीं बनेंगे तेरे साथी, करुणा ,परोपकार की थाती, मुक्ति मार्ग दिखलाएगा। जलबिंदु…

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ख़ौफ ए क़हर

in poems

सन्नाटे चीख रहे, और ध्वनियां हुई मौन है। मानवता को लील रहा, जो ऐसा दानव कौन हैं? जीवो पर निर्ममता, आखिर अपना रुप दिखाएगी ही, ख़ौफ़ ए क़हर का मतलब भी, दुनिया को समझाएगी भी। निर्दयता के चरम बिन्दु को, छूकर भी जो गर्वित है। उनको अपने अणुमात्र से, ऐसा सबक सिखाएगी भी। ये प्रकृति…

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