सुबह सवेरे प्रथम किरण के ,
पहले उठकर सज जाना ,
फिर छठ की पूजा को तत्पर,
नदी किनारे पर जाना।
मां से ज्यादा हम बच्चों का ,
उत्साहित होकर गाना,
नदी किनारे जाने की ,
बेताबी को हमने जाना ।
ठंडे पानी में उतर सूर्य की,
पूजा को ,कर घर आना ।
आनंदित करता है ,अब भी ,
छठ पूजा का वो गाना।
अब तो मां का आंचल है, ना।
छठ की पूजा पर जाना,
लेकिन जीवन ऊर्जाओं का,
उस पल से है ताना-बाना।

दुनियादारी
कुछ नर्म से रिश्तो का ,अधूरा सा फसाना है। ग़र समझ सको ,समझना ,यह दर्द पुराना