ख्वाबों की टोकरी, ख्वाहिशों का बोझ,
जीवन की डोर से ,बंधा इनका छोर।
श्वांसे हैं गिनती की,जाना है दूर,
अधूरी सी ख्वाहिश से, इंसां मजबूर।
कर्मों की टोकरी ही, जाएगी साथ,
बाकी रह जाएगा, धरती के पास।
छोड़ो इन ख्वाबों और ख्वाहिशों का बोझ,
चलो, जिएं ऐसे जैसे, ज़न्नत-ए-एहसास
तब सुखद हो जाएगा, धरती पे वास।