जब त्रेता के स्वर्ण हिरण ने,
सीता हरण करा डाला,
जब सत्य की खातिर हरिश्चंद्र को,
सतयुग ने बिकवा डाला,
तब कलयुग की है क्या बिसात ?
जो स्वर्ण मोह से बच जाए,
या फिर असत्य से दूर रहे ,
और सत्य वचन पर टिक जाए ,
अब तो कलयुग की बारी है,
और लोलुपता की आरी है,
जब धन पूजा से यारी है,
तब नैतिकता भी हारी है|