व्योम,……धरा से।

in poems

 

हंस कर कहता,

व्योम, धरा से।

सूरज चांद सितारे,

ये हैं मेरे सारे ।

तेरे अपने कौन ?

बता मुझे, न रह मौन।

धरती ने ली अंगड़ाई,

फिर थोड़ी शरमाई,

अगणित चांद सितारे मेरे,

क्यूं जलता है भाई ?

मोदी ने भारत चमकाया,

राष्ट्रवाद परचम लहराया।

जिसकी चमकीली ऊर्जा ने,

ऊंच नीच का भेद मिटाया।

ए.पी.जे. अब्दुल कलाम सा,

हमने चांद सितारा पाया।

ऐसे मेरे प्यारो ने,

दुनिया को दम खम दिखलाया।

शून्य धरातल से उठकर जो,

उच्च शिखर पर जाता है,

वही तो विकसित मानवता का,

चरमबिंदु  कहलाता है।

जनकल्याण का लक्ष्य लिए जो,

देश पे मर मिट जाता है।

वही तो तेरे आसमान का,

ध्रुवतारा बन जाता है।

 

 

 

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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