मातृदिवस

in poems

मां ,तू पास नहीं पर,

मुझमें स्पंदित रहती,

मेरे जीवन के हर पग पर,

तू प्रतिबिंबित रहती।

पता नही, कैसे?पर,

तू आभासित रहती।

जीवन के हर पथ पर,

मुझको परिभाषित करती।

आती जाती बाधाओं को,

तू बाधित कर जाती,

हिचकोले खाते जीवन को,

तू ही राह दिखाती।

संदर्भित इस मातृदिवस पर,

फिर प्रसंग है आया,।

मातृप्रेम अभिव्यक्ति पर,

व्यर्थ शोरगुल पाया।

मां है घर की केन्द्र बिन्दु

जिसने अस्तित्व निखारा,

आजीवन हो मातृदिवस,

है औचित्य हमारा।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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