मां ,तू पास नहीं पर,
मुझमें स्पंदित रहती,
मेरे जीवन के हर पग पर,
तू प्रतिबिंबित रहती।
पता नही, कैसे?पर,
तू आभासित रहती।
जीवन के हर पथ पर,
मुझको परिभाषित करती।
आती जाती बाधाओं को,
तू बाधित कर जाती,
हिचकोले खाते जीवन को,
तू ही राह दिखाती।
संदर्भित इस मातृदिवस पर,
फिर प्रसंग है आया,।
मातृप्रेम अभिव्यक्ति पर,
व्यर्थ शोरगुल पाया।
मां है घर की केन्द्र बिन्दु
जिसने अस्तित्व निखारा,
आजीवन हो मातृदिवस,
है औचित्य हमारा।