जा रहा है दिसंबर,
ये साल छोड़कर,
कि अगले वर्ष आएगा,
फिर ठिठुरन ओढ़कर,
हर वर्ष की तरह ही,
यह वर्ष भी गया,
लेकिन इस वर्ष का,
अनुभव बहुत नया।
कुछ फुर्सत के पल रहे,
कुछ ख्वाहिशों के दौर,
ज्यों आम के पेड़ों पर ,
मंजरियों का बौर,
जीवन के अनुभवों से,
सीख जो मिली,
आगत भविष्य के राह की,
दिशा भी खुली।
जो कह गए थे हम से,
आऊंगा अगले वर्ष,
इंतजार हुआ खत्म,
आया है नववर्ष।
आओ कि इंतजार में,
सूरज रहा निखर,
पेड़ों की डालियों पर,
आ रहे नव कोंपल,
आओ जल्दी घर को,
ओढ़े वही मुस्कान ,
आवाज सुनने को,
तरस गए कान।