इंतजार में…!

in poems

जा रहा है दिसंबर,

ये साल छोड़कर,

कि अगले वर्ष आएगा,

फिर ठिठुरन ओढ़कर,

हर वर्ष की तरह ही,

यह वर्ष भी गया,

लेकिन इस वर्ष का,

अनुभव बहुत नया।

कुछ फुर्सत के पल रहे,

कुछ ख्वाहिशों के दौर,

ज्यों आम के पेड़ों पर ,

मंजरियों का बौर,

जीवन के अनुभवों से,

सीख जो मिली,

आगत भविष्य के राह की,

दिशा भी खुली।

जो कह गए थे हम से,

आऊंगा अगले वर्ष,

इंतजार हुआ खत्म,

आया है नववर्ष।

आओ कि  इंतजार में,

सूरज रहा निखर,

पेड़ों की डालियों पर,

आ रहे नव कोंपल,

आओ जल्दी घर को,

ओढ़े वही मुस्कान ,

आवाज सुनने को,

तरस गए कान।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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