प्रेमाग्रह

in poems

इक मोहक सी मुस्कान  लिए,

मन में कुछ कुछ अरमान लिए,

बोली आकर कुछ छूट गया,

उत्साहित मन कुछ टूट गया,

मेरे गुरु, शिक्षक, पथदर्शक,

इस बाल दिवस पर अपने मुख से,

कुछ अपने छंद कहो न !

इस प्रेमाग्रह से चकित हुई,

थोड़ी थोड़ी पुलकित भी हुई,

फिर उत्साहित हो बोल दिया,

दिल का दरवाजा खोल दिया,

बोली मैं, ओ प्यारी शिष्या!

तुम सब से हो न्यारी शिष्या,

शिक्षा की पतवार संभाले,

जब मैं तुम्हें पढ़ाती हूं,

सुखद भविष्य के आस की,

नीं‌व तुम्ही  में पाती हूं।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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