आओ बैठें साथ कुछ ऐसे,
मैं रहूँँ, तुम रहो,और
ख़ामोशी हो ज़ुबांं,
आँँखों से ही एतराज हो,
आँँखों से ही मनुहार हो,
बिना कहे तुम सुन सको,
बिना सुने मैं समझ सकूं,
ऐसी समझ विस्तार हो,
हर दर्द की परवाह हो,
हर ज़ख्म का उपचार हो,
तेरे हृदय के तार से,
झंंकृत मेरा संसार हो।