राजा भोज जब 5 वर्ष के थे, तब उनके पिता बहुत बीमार हो गए थे।
बहुत उपचार के बाद भी जब राजा की तबीयत में संतोषजनक सुधार न हुआ, तब राजा ने अपने भाई मुंज को बुलवाया और कहा कि मेरा पुत्र भोजराज अभी बहुत छोटा है, इसके राज्य संभालने लायक होने तक, राज्य और भोजराज की जिम्मेदारी मैं आपको सौंंपता हूं।
इतना कहकर राजा ने अंतिम सांँस ली।
कुछ वर्षों तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा, लेकिन जैसे-जैसे भोजराज के सिंहासन संभालने का समय निकट आने लगा,मुुंंज की नीयत सिंहासन के लिए व्याकुल होने लगी।
एक दिन उसने अपने विश्वासपात्र सेवक को बुलाया और कहा कि किसी जंगल में ले जाकर भोजराज का वध कर दे।
किसी को कानो कान खबर न हो।
सेवक ने जब जंगल में ले जाकर भोज को मारने के लिए तलवार निकाली, तब भोज ने पूछा, कि ऐसा करने का कारण क्या है? सेवक ने रोते हुए सारी बात बताई।
तब भोज ने कहा कि चाचा को मेरा यह संदेश देना और ताड़ पत्र पर अपने रक्त से जो संदेश लिखा, उसका भावार्थ यह था कि-
“मांधाता जैसे चक्रवर्ती सम्राट आए और चले गए,
जिसके पास स्वर्णमयी लंका थी, वह भी चले गए ।
जिस ने समुद्र पर सेतु निर्माण कराया वह राम भी अब कहां है?
किसी के साथ यह पृथ्वी नहीं गई। लेकिन हे मुंंज,
ऐसा लगता है, तेरे साथ अवश्य जाएगी।”
यह संदेश पढ़कर राजा मुंज पछतावे की आग में जलने लगा।
विलाप करने लगा, तब सेवक ने बताया, कि उसने भोज का वध नहीं किया था, उन्हें कहीं छिपा दिया था ।
ऐसा सुनकर मुंज ने भोज को आदर सहित वापस बुलाया।
राज्य भोज को सौंपकर, स्वयं जंगल में तपस्या करने चले गए।
भारत देश ऐसे अनंत उदाहरणों से भरा पड़ा है, जब किसी एक क्षण में आत्म बोध के कारण जीवन रूपांतरित होने की घटनाएं घटित हो जाती हैं।