“विश्व शांति” सबसे दुर्लभ गीत है आज ।
शांति का मंत्र हम नहीं सहेज पाए। लेकिन प्रकृति ने से बचा रखा है।यह भी अभी गुंजित है, फूलों की सुगंध में, चातक की प्यास में, बगुले की आस में, भोले विश्वास में, सभी भाषाओं से परे सुना और समझा जा सकता है,शांति और मौन का गीत।
समस्त ब्रह्मांड संगीतमय है। संगीत के नाद में सृष्टि के समस्त रंग समाहित है। अनुकूल और प्रतिकूल लय मिलकर ही रचती है जीवन का राग।
इस जीवन राग में, जो हमें सुखद लगता है, वह नाद हो जाता है तथा जो अप्रिय लगता है, वह कोलाहल बन जाता है। लेकिन जिसने नाद और कोलाहल के बीच संतुलन बनाना सीख लिया, उसके लिए जीवन परमानंद हो जाता है ।
जीवन को ऐसा ही संगीत बना कर जिया, राजकुमार सिद्धार्थ गौतम बुद्ध बनकर। राजकुमार वर्धमान ने महावीर स्वामी बनकर। अनंत दृष्टांत से भरा पड़ा है हमारा देश ।
जिन लोगों का जीवन स्वयं के लिए तथा विश्व शांति के लिए प्रेरणादाई है। विश्व शांति के मार्ग पर बढ़ने के लिए हम सबके पूजनीय महर्षि महेश योगी जी ने एक ब्रह्मास्त्र दिया, जिसका नाम है भावती ध्यान ।
“भावातीत ध्यान” सिर्फ एक शब्द नहीं, पूरी जीवन शैली है। यह ज्ञान और आनंद की चरम सीमा तक ले जाने वाला वह मार्ग है, जो पूरे विश्व को शांति से भी जोड़ता है।
वेदों ने तो उद् घोष किया, “अहम् ब्रह्मास्मि” किंतु मानव जगत जब सुषुप्ति से जागृत अवस्था में आए, तब तो वह समझ सकने में समर्थ होगा कि, वह ब्रह्म स्वरुप है, या ब्रह्म ही है।
आत्मानुभूति, आत्म साक्षात्कार, और आत्म तत्व को समझने और समझाने के लिए जिस माध्यम की आवश्यकता है, वह माध्यम है “भावातीत ध्यान”। जो विश्व को शांति पथ पर ले जाने का एक श्रेष्ठ माध्यम भी है।