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October 2018 - page 2

स्वर्णिम स्मृतियाँ

in poems

फूलो कि मुस्कान ? तितलियों की उड़ान? सुबह की ठहरी हुई , ओस की शीतल छुअन ? या ईश्वर की निर्माणकला की , संगीतमय धड़कन? तुम्हारे साथ बिताये पलो को, क्या नाम दूँ ? ये स्वर्णिम स्मृतियों की बाते है, जब शब्द मौन, और अश्रु मुखरित हो जाते है ।

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इच्छा

in poems

समर्पण ही है पारावार, नाविक ले चल मुझे उस पार, हरियाली का हो संसार, दिव्यता हो अनुपम उपहार, नाविक ले चल मुझे उस पार, जीवन उलझा जाल में, कथा बनती है काल में, कहना क्या इस हाल में? आधा जीवन तो बीत गया, आधा ही बीता जाना है, कुछ पल का ही ये बाना है,…

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हे कृष्ण !

in poems

सौंदर्य का संधान हो तुम, माधुर्य का आधान हो तुम, सौम्यता का पर्याय हो तुम, गाम्भीर्य का अभिप्राय हो तुम, मेरे अबोध अन्तःस्थल की, अभिज्ञान हो तुम, विश्रांति हो तुम ।

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द्रौपदी की व्यथा

in poems

अरे! केशव…,आओ न, प्रतीक्षारत नयन मेरे, भींगे भींगे से क्यूँ है ? बताओ न…, घाव गहरे है, जीवन पे पहरे है, अगर लगा सको तो, थोड़ी मरहम लगाओ न, केशव…,आओ न, आगत भविष्य तो पता नही, बीता अतीत भी रिसा नही, बूँद बूँद जो रीत रहा जीवनघट, वो भर जाओ न,केशव…,आओ न, कुछ पल साथ…

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सन्नाटे

in poems

दुःख को मूक, सुखो को मुखरित हो जाने दो, सन्नाटे है बातें करते, हर दम मेरे संग ही रहते, सन्नाटों को और विगुंजित हो जाने दो, दुःख को मूक, सुखों को मुखरित हो जाने दो, घोर अंधेरा है घिर आया, राह नही पड़ता दिखलाई, कितनी दूर मैं चली आई, जीवन के आँगन में, धूप निकल…

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महात्मा गांधी

in poems

गाँधी गाँधी कहते कहते, हम सत्य अहिंसा भूल गये, अपनी पीड़ा तो याद रही, पर पीर पराई भूल गए, अपने अधिकारों का परचम, हर दम लहराना याद रहा, पर स्व कर्म और राष्ट्र धर्म का, दीप जलाना भूल गये, शहीदों की तस्वीरों पर, फूल चढ़ाना याद रहा, पर भुला दिया आदर्शो को, जिनकी ख़ातिर वो…

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शुभकामनाएँ

in poems

हर कदम आपके, मेरी दुआएँ चलें, जीवन सरल बन सके, वो सदाएं चले, मुश्किलों में भी जो, गिर के बिखरें नही, वो हौसला साथ हों, वो जुनूँ साथ हों, फिर मिले आप से, तो ऐसे मिले, हर डगर आपके कदमों के निशाँ साथ हो, आपकी सफलताओं का आसमां साथ हो, अश्रुपूरित नयन संग मधुर हास…

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बचपन

in poems

आँख खुली और टूट गया, एक सपना था जो छूट गया, माँ की लोरी पिता की थपकी, जब जब मेरी आँखें झपकी, देती है मुझको दिखलाई, अपने शहर की याद जो आई, गुल्ली डंडा, खाना पानी, करती थी अपनी मनमानी, उसपर पड़ी डाँट जो खानी, याद आ गयी नानी, मेरे बचपन की कहानी, छतरी थी…

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पर्यावरण

in poems

इन्द्रधनुषी सप्तरंगों का, अब आकाश कहाँ ? धुँए के गुबारो में, सपनों का आवास कहाँ ? गाँवों का हुआ जो शहरीकरण, दूर होती गयी,हमसे शीतल पवन, अब बूँद ओस की झिलमिलाती नहीं, तितलियाँ फूल पर अब इठलाती नही, रूठी तितलियों को चलो फिर से मनाये, आओ मिलकर पेड़ लगायें ।

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पिता की सीख

in poems

जब जन्म लिया इन्सां बन कर, इंसानों जैसे जी तो लो, कुछ दुःख के काँटें कम कर लो, कुछ सुख के फूल खिला तो लो, किसका ऐसा जीवन होगा, जिससे कोई न भूल हुई, जीवन पथ पर चलते चलते, पथ में कोई न शूल हुई, काँटों से ही तो सीखा है, संभलना और संवर जाना,…

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