स्वर्णिम स्मृतियाँ

in poems

फूलो कि मुस्कान ?
तितलियों की उड़ान?
सुबह की ठहरी हुई ,
ओस की शीतल छुअन ?
या ईश्वर की निर्माणकला की ,
संगीतमय धड़कन?
तुम्हारे साथ बिताये पलो को,
क्या नाम दूँ ?
ये स्वर्णिम स्मृतियों की बाते है,
जब शब्द मौन, और
अश्रु मुखरित हो जाते है ।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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