बादलों के झुँड से,
था झाँकता,
नन्हा सा बादल,
हँस के कहता है धरा से,
फिर बरसूंगा सुबह से,
पूर्ण कर जलकुम्भ सारे,
ज्यादा बरसूं सह नही पाती,
कम बरसूं तो रह नही पाती,
तेरे प्यारे सो रहे है,
आलस में ही खो रहे है,
उन्हें जगा और फिर करा तू,
जलप्रबन्ध दुरुस्त सारे,
जब कर्म समय पर किया नही,
तब दोष मुझे क्यों देती है,
अतिवृष्टि और अनावृष्टि के,
अनुत्तरित है प्रश्न सारे।