इन्द्रधनुषी सप्तरंगों का,
अब आकाश कहाँ ?
धुँए के गुबारो में,
सपनों का आवास कहाँ ?
गाँवों का हुआ जो शहरीकरण,
दूर होती गयी,हमसे शीतल पवन,
अब बूँद ओस की झिलमिलाती नहीं,
तितलियाँ फूल पर अब इठलाती नही,
रूठी तितलियों को चलो फिर से मनाये,
आओ मिलकर पेड़ लगायें ।