हम रोज़ बढ़ते हैं,
एक कदम और,
अपनी मृत्यु की ओर,
फिर क्यों मचा हुआ है,
अनर्गल बातों का शोर,
दिव्यता की अनुभूति हो,
या करुणा का सार,
इनके लिए खोलें,
हम हृदय के द्वार,
जीवन को न बनाये,
अनंत लालसाओं का कारागार,
मिटने के पहले जीवन,
जीने की ले लें हम दीक्षा,
वर्ना नष्ट हो जायेगी,
जीवन भर की शिक्षा।