एक पत्र भाई के नाम

in poems

मन की व्यथा कहो ना भाई ,

दुनिया की परवाह हो करते ,

अपनी क्यूँ नहीं ली दवाई,

मन की व्यथा कहो ना भाई ।

बचपन के वह खेल पुराने ,

जरा चोट को अधिक बताते,

और वीर बन हमें डराते ,

अब क्यों अपने जख्मों को तुम,

आंखों से भी नहीं बताते ,

हंसकर कहते बढ़िया है सब,

जो भोलापन बचपन में था,

वैसे ही फिर क्यों ना बन पाते ।

दर्द सभी के होते अपने,

लेकिन हँस कर सहमे सहमे ,

फिर पथ में आगे बढ़ जाते ,

तुमने अपने जीवन जल को ,

क्यों इतना ठहराव दिया है,

फिर सारी दुनिया के लिए क्यों,

हंस-हंसकर हो कमल खिलाते,

खुद के जख्मों की करो विदाई ,

मन की दवा करो ना भाई ।

तुम्हारी बहन

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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