समर्पण ही है पारावार,
नाविक ले चल मुझे उस पार,
हरियाली का हो संसार,
दिव्यता हो अनुपम उपहार,
नाविक ले चल मुझे उस पार,
जीवन उलझा जाल में,
कथा बनती है काल में,
कहना क्या इस हाल में?
आधा जीवन तो बीत गया,
आधा ही बीता जाना है,
कुछ पल का ही ये बाना है,
इसलिए उस पार आना है,
परियाँ रहती जिस देश में,
है रहना उस परिवेश में,
खुशियों का जहाँ खज़ाना है,
मुझे उसी देश में जाना है ।
क़ैद
उत्तराखंड की यात्रा के दौरान मैं नैनीताल के जिस होटल में रुकी थी ,उस होटल से