अपना देश

in poems

ये पुण्य भूमि है भारत की
जहाँ कण कण में भगवान
कल कल करती नदियाँ
जिसका करती रहती गान
इस धरती के कण कण में
वीरो की है गाथायें
अपना सर्वस्व लुटा देश पर
मुस्काती है माताएँ
जहाँ धैर्य लेता है
वीरो की कठिन परीक्षा
फिर भी अपराजित रहने का
इतिहास रहा है जिसका
गाँधी के आदर्शो का
विश्व कर रहा गान
आओ मिलकर सफल बनाये
स्वच्छ भारत अभियान
तभी तो कण कण में गूँजेगा
अपना देश महान।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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